भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और न्यायालयीन घोषणाएं

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मनोज कुमार सिंह

Abstract

भारत में अभिवà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ को असीमित नहीं माना जाता। भारत के संविधान में यह वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की गई है कि यदि अभिवà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ के कारण देश की संपà¥à¤°à¤­à¥à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ अखंडता, देश की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾, मितà¥à¤° देशों के साथ संबंध, सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾, शालीनता à¤à¤µà¤‚ नैतिकता या किसी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के मान-समà¥à¤®à¤¾à¤¨ पर आंच आती हो या अदालत की मानहानि होती हो या किसी अपराध के लिठउकसाया जाता हो तब उस पर “विवेकसमà¥à¤®à¤¤ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤‚ध†लगाठजा सकते हैं।

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